बलरामपुर का इतिहास
बलरामपुर रियासत के इतिहास में बरियार शाह और दिग्विजय सिंह का नाम अत्यंत महत्वपूर्ण है। आपकी जानकारी उस ऐतिहासिक वृत्तांत की ओर संकेत करती है जो बलरामपुर के ‘जनवार’ वंश (Janwar Dynasty) की स्थापना से जुड़ा है।
यहाँ इस घटनाक्रम का विस्तार से विवरण दिया गया है:
1. बरियार शाह का आगमन (1351 ईस्वी)
इतिहासकारों के अनुसार, इस वंश के मूल पुरुष बरियार शाह थे। वे गुजरात के पावागढ़ क्षेत्र के रहने वाले थे। 14वीं शताब्दी के मध्य में, जब दिल्ली सल्तनत पर फिरोज शाह तुगलक का शासन था, तब बरियार शाह अपनी सेना और शौर्य के कारण सुल्तान के करीबी बन गए थे।
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अवध आगमन: 1351 ईस्वी में बरियार शाह सुल्तान फिरोज शाह तुगलक के साथ अवध के क्षेत्र (बहराइच/बलरामपुर) में आए थे। उस समय यह क्षेत्र अराजकता और स्थानीय विद्रोहों से जूझ रहा था।
2. रियासत की नींव (1357 ईस्वी)
बरियार शाह ने इस क्षेत्र के अराजक तत्वों को शांत करने में सुल्तान की बड़ी मदद की। उनकी वीरता से प्रसन्न होकर फिरोज शाह तुगलक ने उन्हें ‘इस्टेट’ (जागीर) प्रदान की।
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स्थापना: 1357 ईस्वी में उन्होंने औपचारिक रूप से उस शासन की नींव रखी जिसे बाद में बलरामपुर राज्य के नाम से जाना गया।
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विस्तार: शुरुआत में उन्होंने इकाओना (Ikauna) को अपना केंद्र बनाया, जो बाद में उनके वंशजों द्वारा बलरामपुर तक फैलाया गया।
3. महाराजा दिग्विजय सिंह का योगदान
यद्यपि नींव 14वीं शताब्दी में पड़ी थी, लेकिन महाराजा सर दिग्विजय सिंह (1818–1882) इस वंश के सबसे प्रतापी और आधुनिक शासक माने जाते हैं। उनके समय में बलरामपुर रियासत ने अपनी चरम ऊँचाई को छुआ:
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1857 का विद्रोह: महाराजा दिग्विजय सिंह ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों का साथ दिया था (विशेषकर बहराइच के घेरे के समय)। इसके बदले में अंग्रेजों ने उन्हें बहुत बड़ी भूमि और ‘महाराजा’ की पदवी से नवाजा।
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समाज सुधार: उन्होंने बलरामपुर में शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे पर बहुत काम किया। ‘दिग्विजय सिंह मेमोरियल’ जैसी संस्थाएं उन्हीं की विरासत हैं।
मुख्य बिंदु : एक नजर में
| शासक / घटना | वर्ष | विवरण |
| बरियार शाह | 1351 | फिरोज शाह तुगलक के साथ अवध आगमन। |
| राज्य की नींव | 1357 | जनवार वंश के शासन की औपचारिक शुरुआत। |
| दिग्विजय सिंह | 19वीं सदी | रियासत को उत्तर भारत की सबसे धनी और प्रभावशाली रियासतों में बदला। |