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माँ पाटेश्वरी देवी मंदिर

तुलसीपुर में स्थित माँ पाटेश्वरी देवी मंदिर (शक्तिपीठ देवीपाटन) न केवल उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे भारत और नेपाल के हिंदू धर्मावलंबियों के लिए आस्था का एक महान केंद्र है। यह मंदिर अपनी प्राचीनता, पौराणिक कथाओं और अद्वितीय परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है।

यहाँ माँ पाटेश्वरी देवी मंदिर की सम्पूर्ण जानकारी दी गई है:

1. पौराणिक कथा और महत्व

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, देवीपाटन मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है।

  • सती का अंग: मान्यता है कि जब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के पार्थिव शरीर के टुकड़े किए थे, तब माता का ‘दाहिना स्कंध’ (दाहिना कंधा) और पट (वस्त्र) यहाँ गिरा था। इसी ‘पट’ के गिरने के कारण इस स्थान का नाम ‘देवीपाटन’ पड़ा।

  • पाताल गमन: एक अन्य लोक मान्यता के अनुसार, माता सीता जब धरती में समाहित (पाताल गमन) हुई थीं, तो वह इसी स्थान से धरती के भीतर गई थीं।

2. मंदिर की मुख्य विशेषताएं

यह मंदिर अन्य शक्तिपीठों से कुछ मायनों में बहुत अलग और विशिष्ट है:

  • विग्रह (मूर्ति) का न होना: इस मंदिर के गर्भगृह में कोई पारंपरिक मूर्ति नहीं है। यहाँ एक ‘शिरोयंत्र’ स्थापित है और एक गड्ढा (पाताल द्वार) है, जिसे फूलों से ढका रखा जाता है। श्रद्धालु इसी स्थान की पूजा करते हैं।

  • अखंड ज्योति: मंदिर में एक अखंड ज्योति सदियों से प्रज्वलित है, जिसके दर्शन का विशेष पुण्य माना जाता है।

  • नाथ संप्रदाय का संबंध: यह मंदिर नाथ संप्रदाय (गोरक्षपीठ) से जुड़ा हुआ है। भगवान परशुराम ने यहाँ तपस्या की थी और गुरु गोरखनाथ ने यहाँ साधना की थी। आज भी इस मंदिर का प्रबंधन गोरखनाथ मंदिर (गोरखपुर) के निर्देशन में होता है।

3. ऐतिहासिक संबंध (महाभारत काल)

  • सूर्यपुत्र कर्ण: पौराणिक कथाओं के अनुसार, दानवीर कर्ण ने इसी स्थान पर स्थित ‘सूर्यकुंड’ में स्नान कर भगवान सूर्य की उपासना की थी और अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा प्राप्त की थी। आज भी श्रद्धालु मंदिर दर्शन से पहले सूर्यकुंड में स्नान करते हैं।


4. प्रमुख उत्सव और परंपराएं

  • चैत्र नवरात्रि मेला: यहाँ सबसे बड़ा मेला चैत्र नवरात्रि में लगता है। एक महीने तक चलने वाले इस मेले में भारत और नेपाल से लाखों श्रद्धालु आते हैं।

  • नेपाल की ‘पीर’ यात्रा: यह इस मंदिर की सबसे अनूठी परंपरा है। हर साल चैत्र नवरात्रि में नेपाल के दांग जिले से माता की ‘पात्र’ (शोभायात्रा) पैदल चलकर यहाँ आती है। इसे ‘रत्ननाथ की शोभायात्रा’ भी कहा जाता है। सदियों से चली आ रही यह परंपरा भारत और नेपाल के सांस्कृतिक संबंधों का प्रतीक है।

5. सामाजिक और सांस्कृतिक योगदान

  • मंदिर परिसर में भक्तों के ठहरने के लिए धर्मशालाएं और भोजन के लिए भंडारे की व्यवस्था रहती है।

  • यहाँ संस्कृत पाठशाला और गौशाला का संचालन भी किया जाता है, जो नाथ संप्रदाय की शिक्षाओं को आगे बढ़ाते हैं।


महत्वपूर्ण जानकारी (यात्रियों के लिए)

  • निकटतम रेलवे स्टेशन: तुलसीपुर रेलवे स्टेशन (मंदिर से मात्र 2 किमी की दूरी पर)।

  • निकटतम हवाई अड्डा: अयोध्या या लखनऊ हवाई अड्डा।

  • दर्शन का सर्वोत्तम समय: नवरात्रि (मार्च-अप्रैल और सितंबर-अक्टूबर) और सावन का महीना।